कैसे बताऊ की मै मे हु, पर अब मैं में नही ।
मै खैलता था, मै दोडता था।
मैं हँसता था, मैं हँसाता था।
मैं रोता था, मैं रुलाता था ।
मैं पढता था, मैं समझता था ।
मैं सुनता था, मैं लड़ता था ।
मैं मैं था, पर मैं मैं नही ।
आखिर मैं क्या था, आखिर मैं क्या हु ?
मैंने मुझे समझा था, मैंने मुझे खो दिया ।
मुझमे एक दुनिया थी, मुझमे एक सपना था।
मैं कुछ ऐसा था, मैं कुछ वैसा था ।
मैं कुछ तो था, मैं कुछ तो हु ।
मैं मैं ही तो था, पर मैं कहा हु ।
मैं वो था जो मैं अब नही ।
मैं हुतो यही कही, कही किसी कोने मे ।
किसी छोटे से घरोंदे में, सपनो की एक आस में ।
मैं था, मैं हु पर कहा.....।
By Admin:- Digvijay Singh Gaur