Thursday, February 12, 2015

I


कैसे बताऊ की मै मे हु, पर अब मैं में नही ।
मै खैलता था, मै दोडता था।
मैं हँसता था, मैं हँसाता था।
मैं रोता था, मैं रुलाता था ।
मैं पढता था, मैं समझता था ।
मैं सुनता था, मैं लड़ता था ।
मैं मैं था, पर मैं मैं नही ।
आखिर मैं क्या था, आखिर मैं क्या हु ?
मैंने मुझे समझा था, मैंने मुझे खो दिया ।
मुझमे एक दुनिया थी, मुझमे एक सपना था।
मैं कुछ  ऐसा था, मैं कुछ वैसा था ।
मैं कुछ तो था, मैं कुछ तो हु ।
मैं मैं ही तो था, पर मैं कहा हु ।
मैं वो था जो मैं अब नही ।
मैं हुतो यही कही, कही किसी कोने  मे ।
किसी छोटे से घरोंदे में, सपनो की एक आस में ।
मैं था, मैं हु पर कहा.....।

By Admin:- Digvijay Singh Gaur


Wednesday, February 4, 2015

Father (पिता)


Dedicated to Father
जिसकी ऊँगली पकड़ कर चलना सीखा,
जिसके कन्धों पर बैठ कर इस जहाँ को देखा,
जिसके संग चल इस संसार को घुमा,
जिसके साथ होने से मे डरता नही था,
मेरी इक आह पे जो दौड़ा चला आता था,
जो मेरी एक मुस्कान के लिये दुनिया से लड़ता,
जो बिन कहै हि मेरे दर्द को समझ जाता,
जो पूरी जिंदगी हमारे लिए जीता,
कभी डाटता को कभी सीने से लगा लेता,
कभी दूर खडा ख़ामोशी से देखता,
तो कभी पास आकर समझाता,
कभी हस्ता तो कभी रो देता,
कभी कंधो पे उठा झूम उठता,
जिसका सबकुछ मेरा और मेरे वजूद वो है,
Love You Papa.


पर आज शायद ये रिश्ते इस भागडोर मे फीके पड रहे हे,
अपने ही अपनो से दूर हो रहे है,
पिताजी,फादर और अब डैड हो गए है,
माँ अब मोम हो गई है,
और तो क्या कहु यारो,
अपने ही अपनों के दुश्मन हो गए है,
संभाल लो इन रिश्तों को जो टूट रहे है,
चंद खुशिया है ये जिंदगी की बटोर लो अगर बटोर सको तो,
वरना एक दिन इनका रिश्तों नाम रह जाये गा,
चंद तस्वीरें और ख़ाली मकान रह जाये गा।
Love You All
Don't break any kind of relations.

By :-Digvijay Singh Gaur
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Monday, February 2, 2015

Hasrat (हसरत)

तुझे पाने की हसरत लिए जीते रहे,
तेरे होने के लिए खुद को खोते रहे,
तेरे हो गए थे उस पल से ही,
जबसे तुझसे इकरार हुआ,
खता हुए ऐसे हमसे की सब बिखर सा गया,
काच के टुकड़ो सा ये रिश्ता टूट सा गया,
तेरी वफ़ा का भी क्या सीला दिया हमने,
दिल तोड़ तुझे ही रुला दिया हमने।

By Admin:- Digvijay Singh Gaur

Thursday, January 29, 2015

Raahi (राहि)

राहो में काटे हे बहूत मगर तू रुकना मत राही,
चला चल बढ़ा चल अपनी मंज़िल की और,
देखते हे दम है कितना टेरे इन इरादो में,
देखते हे कोन है अपना इन काटो भरी रहो में,
मंज़िल भी हे बहुत रास्ते भी हे अनेक,
मगर तू न डगमगाना अपनी मंज़िल से,
बस एक कदम और मिट जायेगे सारे फासले,
बस एक कदम और खुल जायेगे सारे राज,
कोन हे अपना कोन परया इस दुनिया के झमेले में,
बस एक कदम और मगर तू रुकना नही इन रहो में।

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Shyari part-01